इस कश्मीरी पंडित ने कहा था - कोई गोली ऐसी नहीं बनी जो मेरे सीने को पार कर सके, जानिए कैसे हुई हत्या
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द कश्मीर फाइल्स के जरिए घाटी से कश्मीरी पंडितों के पलायन का दर्द सबके सामने आया है। ऐसा माना जाता है कि पंडित टीका लाल टपलू (Tika Lal Taploo) की हत्या के बाद घाटी में पंडितों का कत्लेआम और पलायन शुरू हुआ था। पंडित टीका लाल टपलू पेशे से वकील और जनसेवक भी थे, पंडित टीका लाल टपलू जनता के हितों के लिए घाटी में लाला जी के नाम से मशहूर भी थे। यह भी पढ़े : इन 4 राशि वालों की लाइफ से खत्म होने वाले हैं सारे दुख-दर्द, शनि का गोचर करेगा मालामालपंडित टीका लाल टपलू जनसंघ से जुड़े थे और बीजेपी के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य भी थे। फिल्म के आने के बाद पंडित टीका लाल टपलू के बेटे आशुतोष टपलू ने सुनाई पूरी कहानी कैसे उनके पिता की हत्या कर दी गई। यह भी पढ़े : Ghatsthapana Muhurat: नवरात्र पर घट स्थापना का सबसे शुभ तरीका, जानिए कलश स्थापना की सही विधिआशुतोष टपलू बताते हैं कि ये बात करीब 1986 के आसपास की है जब कश्मीर में हिंदुओं और खासकर पंडितों के खिलाफ अलिखित षड्यंत्र शुरू हो गया था और यही बात मेरे पिता यानी पंडित टीका लाल टपलू को चुभने लगी थी। कश्मीर में उस वक्त नेशनल कॉन्फ्रेंस की सरकार थी और फारुख अब्दुल्ला CM थे. दिल्ली को कश्मीर के सही हालात नहीं बताए जा रहे थे, दूसरी तरफ कश्मीर में पाक समर्थित आतंकवादियों की तादाद बढ़ती जा रही थी। मुस्लिम युवाओं को पंडितों के खिलाफ उकसाया जा रहा था। इसी संदर्भ में मेरे पिता पंडित टीका लाल टपलू आवाज उठा रहे थे, दिल्ली में कश्मीर की जर्जर हालत को सबके सामने रख रहे थे। लेकिन न तो दिल्ली की सरकार को कोई फर्क पड़ रहा था और ना ही जम्मू-कश्मीर की सरकार को, लेकिन मेरे पिता मानने वाले नहीं थे। यह भी पढ़े : Horoscope 2 April : आज इन 2 राशि वालों का सूर्य के समान चमकेगा भाग्य, बरसेगी माता रानी की कृपा, बनेगे हर बिगड़े कामउन्हें लगातार धमकियां मिल रही थी, हम सब घर वाले परेशान थे, मां भी चिंतित थीं, मैं 20 साल का था लेकिन दुनियादारी की समझ थी. मैंने पिताजी से कहा कि कश्मीर के अलावा हम लोगों की जिम्मेदारियां भी आप पर हैं, इस पर पिताजी ने कहा कि देखो मैं इस लड़ाई से पीछे नहीं हटूंगा. कश्मीर हमारा है, हमारी जन्मभूमि है हम कैसे छोड़ सकते हैं? मेरे परिवार के अलावा घाटी में बहुत सारे परिवारों की उम्मीद मैं हूं. मैं उन्हें निराश नहीं कर सकता. इसलिए तुम अपनी मां के साथ दिल्ली रहो. शायद ये मेरी और पिताजी की अंतिम बातचीत थी और वही हुआ जिसका डर हमें था.घात लगाए आतंकियों ने की हत्या13 सितंबर 1989 को पिताजी घर से बाहर कोर्ट जाने के लिए निकले तब बाहर गली में एक बच्ची रो रही थी, पंडित टीका लाल टपलू ने पूछा कि क्यों रो रही हो? उसकी मां ने बताया कि इसे जलसे में जाना है और पैसे मांग रही है तो पंडित टीका लाल टपलू ने कुछ नहीं कहा और 5 रुपये का नोट निकालकर उसके हाथ पर रख दिया और उसके बालों को सहलाया. इसके कुछ देर बाद ही घात लगाए आतंकियों ने पिता की पीठ पर गोलियों की बौछार कर दी, पिता जी वहीं निढाल हो गए. जब हमें जानकारी मिली तो मैं निशब्द था, मां हैरान थी, हम उसी घाटी में पहुंचे, वहां पहुंचते ही हमें अरेस्ट कर लिया गया, कई प्रतिबंध लगा दिए गए.हालांकि ये तो बीती बात हो गई, मैं उनके अंतिम संस्कार में लोगों से मिला, पड़ोसियों से मिला, हिंदुओं के अलावा मुसलमान भी रो रहे थे. वो सबकी मदद करते थे, एक चश्मदीद ने जो बताया उस पर आज भी मुझे फक्र है. जब पिताजी की अंतिम सांसे चल रही थी तो उन्होंने कहा कि तुम लोग कायर हो, पंडित टीका लाल टपलू की पीठ पीछे वार किया, मैं तो हमेशा कहता था कि कोई गोली ऐसी नहीं बनी की पंडित टीका लाल टपलू के सीने को पार कर सके.
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