आम बजट 2022 : चुनावी मौसम में पुरानी चादर झाड़कर दोबारा उढ़ा दी गई, राजनीतिक विश्लेषक अतुल मलिकराम
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- बजट 2022: राहत के नाम पर आम आदमी को मिला महाभारत का श्लोक- राजनीतिक विश्लेषक अतुल मलिकराम - हमेशा की तरह सुस्त और नीरस साबित हुआ मिड बजट - राजनीतिक विश्लेषक अतुल मलिकराम आज मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का चौथा बजट, केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोक सभा में पेश किया. पिछले वर्ष ढ़ाई घंटे से अधिक का बजट भाषण, इस बार डेढ़ घंटे में ही सिमट गया. जैसे-जैसे सीतारमण, बजट भाषण को आगे बढ़ाती गईं, शेयर मार्केट के साथ-साथ टैक्स में छूट को लेकर बंधी करोड़ों उम्मीदें भी टूटने लगीं. मार्केट तो बजट के बीच सेशन में ही पटरी पर आ गया लेकिन सोशल मीडिया पर बातें तेज हो गई कि कोऑपरेटिव और कॉर्पोरेट्स को टैक्स में छूट दी गई, लेकिन आम आदमी को राहत के नाम पर महाभारत का श्लोक सुना दिया गया. सरकार के समक्ष जो रोजगार, स्वास्थ्य, सर्विस क्लास और किसान से जुड़ी समस्याओं की लिस्ट थी, उसके लगभग सभी बिंदुओं को बजट में जगह देने की कोशिश की गई है. लेकिन सिर्फ ऊपर ऊपर से. इस बजट पर सवालिया निशान लगाने वालों को वित्तमंत्री ने शब्दों का सही इस्तेमाल करते हुए पहले ही स्पष्ट कर दिया कि इस बजट से अगले 25 साल की बुनियाद रखी जाएगी. यानी भले आप प्यास से मर रहे हों लेकिन अब आप गड्ढा खोदकर तुरंत पानी पी लें, ऐसा कुछ नहीं होगा. पहले गड्ढे के लिए जमीन निर्धारित की जाएगी, फिर टेंडर निकलेगा, मशीने आएंगी, अंत में प्लास्टर हो जाने के बाद मोटर का बटन किसी नेता के हाथों दबवाया जाएगा, फिर पानी आ गया तो थोड़ा हक़ आपका, बाकी वाहवाही सरकार की. हालांकि तब तक कई प्यासे कुएं में समां चुके होंगे. शायद इसीलिए वित्त मंत्री ने भविष्य में 60 लाख नई नौकरियां नहीं बल्कि नौकरियों के अवसर उत्पन्न करने की बात कही है. चुनावी मौसम में सालाना 80 लाख मकानों को भी छत देने का वादा किया गया है. जबकि पबजी खेलने वाली जेनेरशन को 5G की सौगात भी दी जा रही है, इतना ही नहीं डाकघरों को अब बैंक बनते देखने का सपना भी जल्द ही पूरा होने वाला है. इसे विडम्बना कहें या सरकार की उदासीनता, कि पूरे बजट भाषण में किसान का नाम मात्र 3 बार सुनने को मिला. रोजगार का जिक्र जरूर कई बार हुआ लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से, स्वास्थ्य के लिए क्या नया हुआ, शायद कल बीजेपी द्वारा आयोजित बजट सेशन में प्रधानमंत्री बताने वाले हैं. बाकि सर्विस क्लास के पास अपने रोने हैं ही. हालाँकि मेरे द्रष्टिकोण में इस बजट को उन बजटों में शामिल किया जाना चाहिए, जिसके लिए शायद सरकार भी बहुत तैयारियां नहीं करती है. पिछले दो दशकों का रिकॉर्ड उठाकर देखेंगे तो पाएंगे कि सरकार के पांच वर्षों के कार्यकाल के बीच में पेश किये गए बजट अक्सर सुस्ती और फीकेपन या नीरसता का शिकार ही होते हैं.आपको याद हो तो पिछले बजट में कई महत्वाकांक्षी योजनाओं की शुरुआत की गई, जिन पर 60 फीसदी से भी कम धन खर्च हुआ. बजट भाषण कम समय और शब्दों में गुजर जाने का एक कारण ये भी है कि सरकार के पास कुछ नया बोलने के लिए है ही नहीं. नए में RBI का डिजिटल रुपैया जिस पर 30 फीसदी टैक्स और ई-पासपोर्ट ही है. बाकि बातों और योजनाओं को 2023-24 के लिए बचा कर रखा गया है. सारे पत्ते अभी ही खोल दिए जायेंगे तो फाइनल राउंड में क्या दर्शाएंगे? बाकि जाते जाते सीतारमण की एक बात ध्यान रखिये कि 2 साल से टैक्स न बढ़ाना भी तो राहत ही है, और फिर ये अर्जुन का बजट है, एकलव्य का नहीं..
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