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खुद को भैंस और कोच को गधा कहे जाने से आहत हुर्इ दीपा, लिख दी नर्इ गाथा


राष्ट्रमंडल खेल 2010 में पदक से चूक जाने के बाद किसी साथी खिलाड़ी ने जिमनास्ट दीपा कर्माकर को भैंस आैर उनके कोच बिश्वेश्वर नंदी को गधा कहा था। इसके बाद क्या था दीपा ने रियो ओलंपिक में चौथे स्थान पर रहकर भारतीय जिमनास्टिक का सबसे सुनहरा अध्याय लिखा आैर तफरीह के लिए टूर्नामेंट में आए माने जाने वाले जिमनास्टों को सम्मान और पदक उम्मीद का दर्जा दिलाया। ताने ने किया आहत आैर लिख दी नर्इ गाथादिल्ली में 2010 में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में दीपा फाइनल में पहुंची, लेकिन पदक नहीं जीत सकी, ऐसे में एक साथी पुरूष जिमनास्ट ने कहा डाला, यह भैंस है और इसका कोच गधा। इस ताने में उन्हें इतना आहत किया कि उन्होंने पदक जीतना ही अपना लक्ष्य बना लिया। रियो में दीपा की कामयाबी सभी ने देखी। त्रिपुरा जैसे पूर्वोत्तर के छोटे से राज्य से निकलकर अंतरराष्ट्रीय खेल मानचित्र पर अपनी पहचान बनाने के उसके सफर की गाथा भी उतनी ही दिलचस्प है। जिसे दीपा के कोच बिश्वेश्वर नंदी, मशहूर खेल पत्रकार दिग्विजय सिंह देव और विमल मोहन ने अपनी किताब दीपा करमाकर : द स्माल वंडर में लिखा है।खेल ने लगाया उनके जख्मों पर मरहमअपनी होनहार शिष्या को ओलंपिक पदक पहनते देखने का सपना कोच नंदी की आंखों में भी पल रहा था। दिल्ली में मिले ताने ने दीपा की नींद उड़ा दी थी और खेल ने ही उसके जख्मों पर मरहम लगाया जब रांची में 2011 में हुए राष्ट्रीय खेलों में उसने पांच पदक जीते। इसके बावजूद उन्हें पता था कि शीर्ष जिमनास्टों और उसमें अभी काफी फर्क है। ग्लास्गो राष्ट्रमंडल खेलों से पहले नंदी ने यूट्यूब पर प्रोडुनोवा के काफी वीडियो देखे और दीपा से पूछा कि क्या वह यह खतरनाक वोल्ट करेगी। खेलों में पांच छह महीने ही रह गए थे लेकिन दीपा को अपनी मेहनत और कोच के भरोसे पर यकीन था जिस कारण से उन्होंने हामी भर दी। टीम प्रबंधन में और साथी खिलाड़ियों में भी उसके यह वोल्ट आफ डेथ करने को लेकर मिश्रित प्रतिक्रिया थी। दीपा ने ट्रायल में प्रोडुनोवा किया और पहला टेस्ट पास कर गई। उसने छह से आठ घंटे रोज मेहनत की और आखिरकार वह दिन आ गया जिसका वह दिल्ली राष्ट्रमंडल खेल से इंतजार कर रही थी।चोट के बाद भी दीपा ने किया क्वालीफार्इस्कॉटलैंड में क्वालीफाइंग दौर के लिये अभ्यास के दौरान ही उसकी एड़ी में चोट लग गई। उसने चोट के साथ ही सारी एक्सरसाइज की। कोच नंदी को लगा कि राष्ट्रमंडल पदक जीतने का सपना खेल शुरू होने से पहले ही टूट गया लेकिन दीपा ने क्वालीफाई किया। फाइनल तीन दिन बाद था और चोट के कारण वह अभ्यास नहीं कर सकी। फाइनल में दर्द की परवाह किये बिना दीपा की नजरें सिर्फ पदक पर थी। यह उसके लिए तत्कालिक सम्मान नहीं बल्कि उसके हुनर पर सवालिया निशान उठाते आ रहे लोगों को जवाब देने का जरिया था। यह उसके साथ उसका सपना देख रहे कोच नंदी को उसकी गुरूदक्षिणा थी। यह भारतीय जिम्नास्टों को उनका सम्मान दिलाने की उसकी जिद थी।वोल्ट में कांस्य पदक जीतकर रचा इतिहासदीपा ने ग्लास्गो में महिलाओं के वोल्ट में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रच डाला। वह इन खेलों में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला जिमनास्ट और आशीष कुमार के बाद दूसरी भारतीय बनी। उसके गले में पदक था , आंखों में आंसू थे और नजरें मानों कोच से कह रही थी कि सर आज भैंस और गधा जीत गए। आंख बंद करके उसने कहा थैंक्यू येलेना प्रोडुनोवा। वही जिमनास्ट जिसके नाम पर प्रोडुनोवा बना और जिसने दीपा को नयी पहचान दिलाई।

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