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त्रिपुरा हिंसा : एसआईटी जांच की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया नोटिस


सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को त्रिपुरा में सांप्रदायिक हिंसा (Tripura violence) की स्वतंत्र एसआईटी जांच (independent SIT probe) की मांग वाली याचिका पर नोटिस जारी किया। अधिवक्ता प्रशांत भूषण के माध्यम से अधिवक्ता एहतेशाम हाशमी द्वारा दायर याचिका में केंद्र, डीजीपी त्रिपुरा और त्रिपुरा सरकार को प्रतिवादी के रूप में रखा गया है। न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ (Justice DY Chandrachud) ने याचिकाकर्ता के वकील को याचिका की प्रति केंद्रीय एजेंसी और त्रिपुरा के स्थायी वकील को देने की अनुमति दी। पीठ ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 13 दिसंबर की तिथि निर्धारित की है।भूषण (Advocate Prashant Bhushan) ने तर्क दिया कि जिस तरीके से पुलिस मामले की जांच कर रही है, याचिकाकर्ता ने उसे दिखाया है। उन्होंने आगे तर्क दिया कि पुलिस एफआईआर दर्ज नहीं कर रही है, हिंसा पर रिपोर्ट करने वाले पत्रकारों के खिलाफ यूएपीए लागू कर रही है और तथ्य-खोज रिपोर्ट पेश करने वाले वकीलों को नोटिस भेज रही है।याचिका में दावा किया गया है कि 13 अक्टूबर से 27 अक्टूबर के बीच त्रिपुरा में संगठित भीड़ द्वारा घृणात्मक अपराध (Tripura violence) किए गए। याचिका में कहा गया है, इसमें मस्जिदों को नुकसान पहुंचाना, मुसलमानों के स्वामित्व वाले व्यापारिक प्रतिष्ठानों को जलाना, इस्लामोफोबिक और नफरत फैलाने वाले नारे लगाने वाली रैलियां आयोजित करना और त्रिपुरा के विभिन्न हिस्सों में मुसलमानों को निशाना बनाने वाले नफरत भरे भाषण (hate speech) देना शामिल है।इसके साथ ही याचिका में कहा गया है कि उन लोगों की गिरफ्तारी नहीं हुई है, जो मस्जिदों को अपवित्र करने या दुकानों में तोडफ़ोड़ करने और मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने वाले नफरत भरे भाषण देने के लिए जिम्मेदार हैं। मामला उस पीठ के सामने आया, जिसने हाल ही में संपन्न नगरपालिका चुनावों (Tripura Municipal Elections) से पहले त्रिपुरा में कानून-व्यवस्था की स्थिति के प्रभावी नियंत्रण के लिए निर्देश पारित किए हैं। हाशमी की याचिका में दावा किया गया है कि राज्य सरकार के अधिकारियों और पुलिस ने कथित घृणा फैलाने वाले अपराधों में शामिल अपराधियों के साथ हाथ मिला रखा है। इसमें कहा गया है, पुलिस और राज्य के अधिकारियों ने हिंसा को रोकने के प्रयास के बजाय दावा किया कि त्रिपुरा में कहीं भी सांप्रदायिक तनाव नहीं था और किसी भी मस्जिद को आग लगाने की खबरों से इनकार किया गया है। अंतत: पुलिस सुरक्षा कई मस्जिदों तक बढ़ा दी गई, धारा 144 आईपीसी के तहत आदेश जारी किए गए थे; और हिंसा के पीडि़तों के लिए मुआवजे की भी घोषणा की गई। याचिकाकर्ता ने शीर्ष अदालत से यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश जारी करने का आग्रह किया कि मुस्लिम समुदाय के खिलाफ हिंसा (violence against muslim community) की घटनाओं में एक स्वतंत्र, विश्वसनीय और निष्पक्ष जांच की जाए, जैसा कि एसआईटी द्वारा त्रिपुरा में मानवता के तहत हमले शीर्षक वाली तथ्य-खोज रिपोर्ट से स्पष्ट है।

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