Breaking News

पैरों में छुपा है अल्सर का स्मार्ट इलाज, आप भी जानिये

दुनियाभर में डायबिटीज के बढ़ते शिकंजे के साथ ही उससे जुड़ी जटिलताओं जैसे डायबिटिक फुट अल्सर के मामले बढ़ने की भी आशंका है। डायबिटीज को ठीक से प्रबंधित न किया जाए तो इससे घातक स्थिति में नसें भी निष्क्रिय होने लगती हैं और मरीज की चाल असंतुलित हो सकती है जिससे पैरों में दबाव से अल्सर पैदा होने का खतरा बढ़ जाता है। अगर इसका ढंग से इलाज नहीं किया जाए तो इनमें संक्रमण का खतरा पैदा हो जाता है और कभी-कभी तो पैर को काटना भी पड़ जाता है। अगर दुर्घटनाओं को छोड़ दें तो डायबिटिक फुट अल्सर के कारण आज दुनिया में सबसे ज्यादा पैर काटने की जरूरत पड़ती है। भारत में खासतौर पर यह चिंता का विषय है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय डायबिटीज फेडरेशन के आंकडों के अनुसार भारत में दुनिया भर के दूसरे सबसे ज्यादा वयस्क डायबिटीज़ के शिकार हैं।

सस्ता इलाज ढूंढ़ना था उद्देश्य

रिसर्चर कायला ह्यूमर का वर्ष 2018-19 का प्रोजेक्ट उन मरीजों के लिए कम खर्चीला इलाज सुझाने से संबंधित था जिन्हें पैरों में अल्सर होने का खतरा अधिक होता है। उन्होंने जिन डायबिटीज रोगियों के साथ काम किया, उनमें एक थर्मल पैटर्न देखा। इसलिए उन्होंने डायबिटिक फुट की पहचान के लिए थर्मल इमेजिंग का इस्तेमाल किया। इसका मकसद सबसे पहले कम खर्च में इस रोग के होने का पता लगाना और फिर उसकी गंभीरता को आंक कर पैरों में अल्सर बनने से रोकने के उपाय करना था चिकित्सा उपकरणों में ह्यूमर की दिलचस्पी कई साल पहले से थी। ह्यूमर साल 2016 में वह बेंगलुरू के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस में एसएन बोस स्कॉलर प्रोग्राम के तहत एक रिसर्च इंटर्नशिप पर आई थीं। बेंगलुरू में, ह्यूमर ने डायबिटिक फुट अल्सर थेरेपी को बेहतर बनाने के लिए ऐसी तकनीक पर काम किया जिसे पैर में कहीं भी आसानी से पहना जा सके। इस उपकरण के विकास के बाद उन्होंने इस तरह के उपकरण की आवश्यकता के बारे में मेडिकल विभाग को आगाह किया। क्योंकि भारत में डायबिटीज बड़े पैमाने पर फैली हुई है।

मर्ज़ बिगड़ने से पहले मिले इलाज

अगस्त 2018 के बाद के नौ महीनों तक ह्यूमर ने क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लूर कीटीम के साथ उस तकनीक पर काम किया जिसे डायबिटिक फुट अल्सर वाले पैरों में पहना जा सके। यह उपकरण मरीज के अल्सर वाले पैरों में दबाव को माप कर डॉक्टरों को ऐसे समाधान को प्रेरित करता है जिससे कि दबाव को कम करके घाव को भरने में मदद की जा सके। इस प्रोजेक्ट पर काम करते हुए ह्यूमर को अहसास हुआ कि मरीज पहले कई बार उस हालत में आते थे जब घाव बहुत गहरे होते थे और डॉक्टरों के लिए उनका इलाज कर पाना मुश्किल होता था और पैर काटने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता था। ऐसी हालत में उन्होंने सोचा कि क्यों न मरीज को इन हालात में पहुंचने से पहले ही मदद दी जाए और सबसे पहले अल्सर को बनने से ही रोका जाए और वह भी कम खर्च में।

थर्मल सिस्टम से ढूंढा समाधान

ह्यूमर कुछ अलग तरह के समाधान की तलाश में थी, तभी उन्होंने यह देखा कि अल्सर बनने से पहले मरीज के पैरों में हल्की सूजन आती है और उस जगह पर कुछ गर्म महसूस होता है। इससे एक नई आइडिया उभरा- तापमान पर ध्यान दिया जाए। ह्यूमर ने इसी के चलते रोगियों के पैरों की सैंकडों थर्मल इमेज लीं। वह कहती हैं,वे बतौर एफिलिएट रिसर्चर इन आंकड़ों पर काम कर रही हैं जिससे कि थर्मल स्कैन में अल्सर होने से पहले के चेतावनी देने वाले संकेत मिल सकें।

बता दें कि अल्सर शरीर के अंदर छोटी आंत के शुरुआती स्थान या म्यूकल झिल्ली पर होने वाले छाले या घाव होते हैं। अल्सर का प्रमुख कारण पेट में एसिड बढ़ना, चाय, कॉफी, सिगरेट व शराब आदि का अधिक सेवन है। इसके अलावा ज्यादा खट्टी, मसालेदार और गर्म पदार्थ का सेवन करने से अल्सर की समस्या हो जाती है।



from Patrika : India's Leading Hindi News Portal https://ift.tt/3eKh4VY

कोई टिप्पणी नहीं